अज़ीम हाशिम प्रेमजी भारत के सबसे बड़े और सफल उद्योगपतियों में से एक हैं। वे भारत की जानी-मानी आईटी कंपनी विप्रो के संस्थापक हैं और उन्हें “भारत के सबसे बड़े दानदाता” के रूप में भी जाना जाता है। आइए जानते हैं उनके जीवन के बारे में।
प्रारंभिक जीवन
अज़ीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता का नाम मोहम्मद हाशिम प्रेमजी था, जो उस समय एक सफल व्यवसायी थे। उनके पिता की कंपनी तेल का कारोबार करती थी। बचपन से ही अज़ीम प्रेमजी बहुत मेहनती और समझदार थे। उन्हें पढ़ाई में बहुत दिलचस्पी थी, और उन्होंने हमेशा मेहनत से पढ़ाई की।
पढ़ाई और शुरुआती संघर्ष
अज़ीम प्रेमजी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई मुंबई में की। बाद में उन्होंने आगे की पढ़ाई के लिए अमेरिका के स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। वहां उन्होंने इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू की। लेकिन जब वह 21 साल के थे, तब उनके पिता का अचानक देहांत हो गया। उस समय अज़ीम प्रेमजी की पढ़ाई पूरी नहीं हुई थी, और परिवार का कारोबार चलाने के लिए उन्हें भारत लौटना पड़ा।
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विप्रो की शुरुआत
भारत लौटने के बाद अज़ीम प्रेमजी ने अपने पिता की कंपनी का जिम्मा संभाला। उस समय उनकी कंपनी वनस्पति तेल और साबुन बनाती थी। अज़ीम प्रेमजी ने कड़ी मेहनत और सूझबूझ से कंपनी को एक नई दिशा दी। उन्होंने सोचा कि सिर्फ तेल और साबुन बनाने से काम नहीं चलेगा, इसलिए उन्होंने कंपनी के काम को बढ़ाने का फैसला किया।
1970 के दशक में, जब पूरी दुनिया में कंप्यूटर और टेक्नोलॉजी का जमाना आ रहा था, तब अज़ीम प्रेमजी ने आईटी और सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में कदम रखा। उन्होंने अपनी कंपनी का नाम वेस्टर्न इंडिया वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड से बदलकर विप्रो कर दिया और इसे आईटी कंपनी बना दिया। यह एक बहुत बड़ा और साहसिक फैसला था, लेकिन उनकी मेहनत और दूरदर्शिता के कारण यह सफल हुआ।
विप्रो की सफलता
विप्रो कंपनी ने बहुत तेजी से सफलता हासिल की। आज यह भारत की सबसे बड़ी आईटी कंपनियों में से एक है। विप्रो कंप्यूटर, सॉफ्टवेयर, और आईटी सेवाओं के क्षेत्र में दुनिया भर में काम करती है। अज़ीम प्रेमजी की मेहनत, अनुशासन और ईमानदारी ने कंपनी को ऊंचाइयों पर पहुंचाया। उन्होंने विप्रो को सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि दुनियाभर में एक पहचान दिलाई।
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परोपकारी कार्य
अज़ीम प्रेमजी न केवल एक सफल उद्योगपति हैं, बल्कि वे एक बहुत बड़े दानदाता भी हैं। उन्होंने अपनी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा गरीबों और ज़रूरतमंदों की मदद के लिए दान कर दिया है। उन्होंने अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन की स्थापना की, जो शिक्षा और समाज सेवा के क्षेत्र में काम करती है। इस फाउंडेशन का मुख्य उद्देश्य भारत में शिक्षा की गुणवत्ता को बेहतर बनाना है।
अज़ीम प्रेमजी का मानना है कि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिलनी चाहिए, ताकि वे एक अच्छा जीवन जी सकें और समाज में बदलाव ला सकें। उनकी संस्था कई स्कूलों में मदद करती है और शिक्षकों को ट्रेनिंग भी देती है, ताकि बच्चों को अच्छी शिक्षा मिल सके।
सरल जीवन और प्रेरणा
अज़ीम प्रेमजी का जीवन बहुत सरल है। उन्होंने अपने पूरे जीवन में मेहनत और ईमानदारी को सबसे ज्यादा महत्व दिया है। वे बहुत ही साधारण कपड़े पहनते हैं और दिखावे से दूर रहते हैं। उन्होंने कभी अपनी संपत्ति का दिखावा नहीं किया, बल्कि हमेशा दूसरों की मदद करने में यकीन रखा।
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उनका मानना है कि सफलता के लिए मेहनत और अनुशासन बहुत जरूरी हैं। वे बच्चों और युवाओं को हमेशा यह सिखाते हैं कि मेहनत से ही सफलता मिलती है। उनका जीवन हम सबके लिए एक बहुत बड़ी प्रेरणा है।
सम्मान और पुरस्कार
अज़ीम प्रेमजी को उनके काम के लिए कई बड़े सम्मान और पुरस्कार मिले हैं। भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण और पद्म भूषण जैसे बड़े सम्मान दिए हैं। दुनिया भर के लोग उनकी मेहनत, ईमानदारी और दानशीलता की तारीफ करते हैं। वे दुनिया के सबसे बड़े दानदाताओं में से एक हैं।
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निष्कर्ष
अज़ीम प्रेमजी ने यह साबित कर दिया है कि अगर आपके पास मेहनत करने की चाहत और समाज की सेवा करने का इरादा हो, तो आप बड़ी से बड़ी सफलता हासिल कर सकते हैं। उन्होंने विप्रो को सिर्फ एक आईटी कंपनी नहीं बनाया, बल्कि अपने काम से समाज में बदलाव लाने का भी प्रयास किया। उनकी दानशीलता और शिक्षा के प्रति समर्पण हमें यह सिखाता है कि सच्ची सफलता वही है जो दूसरों की भलाई के काम आए।
अज़ीम प्रेमजी का जीवन हम सभी के लिए एक प्रेरणा है, खासकर बच्चों के लिए।